चीन ने वहां कोरोना की पहली लहर आते ही 20-25 दिनों के अंदर बड़ी-बड़ी कैपेसिटी के आईसीयू बेड वाले हॉस्पिटल बनाकर संक्रमण को नियंत्रित किया। सुनामी के पहले दौर में हमने भी चीजों को बहुत संभाला व स्थिति को नियंत्रित किया, मगर इस बार के संक्रमण के फैलाव को रोकना बहुत कठिनतर बनता जा रहा है, हमने राजनैतिक लाभ व लापरवाही के कारण कोरोना के पहले दौर में अर्जित थोड़े बहुत लाभ की स्थिति को गवा दिया है।
आज मैंने प्रातः शशि शेखर जी का एक बहुत प्रेरणास्पद लेख पढ़ा, “इन जुझारूओं के जज्बे को सलाम” उन्होंने उसमें ऐसे योद्धाओं का जिक्र किया है, जिन्होंने अपने गवा दिये, मगर दूसरों को बचाने के लिए अपने को समर्पित कर दिया। इनमें खीरी लखीमपुर के मिथिलेश सिंह भी हैं। शशि शेखर ने ऐसे लोगों का भी उल्लेख किया है जो अपने को खतरे में डालकर कोरोना संक्रमितों की मदद कर रहे हैं।
उन्होंने हल्द्वानी के 7 डॉक्टरों और 1 सेवानिवृत्त बैंकर बी_वी_शर्मा का भी उल्लेख किया है, उन्होंने अपने लेख में इमाम मौलाना आरिफ का भी जिक्र किया है, जिन्होंने स्थानीय प्रशासन को मस्जिद की भूमि देकर वहां कोरोना कैंप लगाने का आग्रह किया है। हम रोज ऐसे लोगों के विषय में भी समाचार पत्रों में पढ़ रहे हैं कि जब कोरोना पीड़ित की अंतिम यात्रा में अपने कंधा देने के लिए नहीं मिल रहे हैं तो दूसरे धर्म को मानने वाले लोग आगे आकर कंधा दे रहे हैं और अंतिम संस्कार कर रहे हैं, यह है भारत जो हमको बड़ी से बड़ी चुनौतियों से लड़ने की क्षमता व प्रेरणा देता है।
देश को स्पष्ट निर्णय और मार्गदर्शन चाहिये। चुनाव निकल गये, परिणाम भी आ गये हैं, मगर अभी तक कोरोना के खिलाफ लड़ाई की स्पष्ट राष्ट्रीय नीति नहीं दिखाई दे रही है। इस बार केंद्र सरकार कह रही है कि लॉकडाउन आदि कठोर निर्णय लेने का फैसला राज्य सरकारों को करना है, यह एक बेचैनी पैदा करने वाली हिचकिचाहट है। राज्यों को लग रहा है कि केंद्र सरकार कठोर फैसला लेने का उत्तरदायित्व राज्यों पर डालना चाहती है।
कोरोना, प्रशासनिक सीमाओं में बधा हुआ नहीं है। कुछ राज्यों ने लॉकडाउन लगाने का फैसला लिया है, मगर उसका लाभ यथा सीमा नहीं मिल पा रहा है, उदाहरण के लिए उत्तराखंड को लेते हैं जहां सभी राजनैतिक दलों ने कोई भी कदम उठाने का अधिकार माननीय मुख्यमंत्री जी को सौंप दिया है, पहले हिचकिचाते हुये 6 दिन का लॉकडाउन कुछ जिलों के नगरी क्षेत्रों में लगाया था, अब 3 दिन के लिए लॉकडाउन और बढ़ाया गया है जबकि राज्य में कोरोना की स्थिति और चिंताजनक होती जा रही है। मैं अभी तक 3 दिन के लिये ही लॉकडाउन बढ़ाने का तर्क नहीं समझ पाया हूंँ।
आपने भी पढ़ा होगा कि अमेरिका के राष्ट्रपति जी के मुख्य स्वास्थ्य सलाहकार एंथोनी ने भारत में की वर्तमान स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए पूरे देश में कुछ सप्ताह का पूर्ण लॉकडाउन आवश्यक बताया है और उन्होंने एक राष्ट्रीय स्तर पर “पूर्ण अधिकार संपन्न शीर्ष समूह” गठित करने का भी सुझाव दिया है। मैं एक विशेषज्ञ की सलाह पर टिप्पणी करने योग्य नहीं हूंँ, मगर मैं राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर कठोरतम कदम उठाने को लेकर हिचकिचाहट साफ-साफ देख रहा हूंँ व महसूस कर रहा हूंँ।
यदि अनिश्चय और नीतिगत हिचकिचाहट के कारण हम कुछ और बहुमूल्य जीवन गवाते हैं तो इसका उत्तरदायित्व किसका बनेगा? आज हर आती हुई टेलीफोन रिंग के साथ व्यक्ति की बेचैनी बढ़ जा रही है, कोरोना चेन टूटने के आसार दिखाई नहीं दे रहे हैं, हमें आत्मबल बढ़ाने का सहारा चाहिये, चाहे राज्य सरकार वो सहारा प्रदान करें या केंद्र सरकार प्रदान करें। देश में शशि शेखर जी के तरीके से “इन जुझारूओं के जज्बे को सलाम” करने वाले कलमचियों की कमी नहीं है, देश में जीवटता की भी कमी नहीं है, उसको केवल समेटने व सहेजने वाले लोग चाहिये।