‘आधारशिला’ के यशस्वी संपादक दिवाकर भट्ट जी का अपने बीच से चला जाना मेरे लिए बेहद विचलित करने वाला है।
उसी दिन मेरे ‘याशिका MF-2’ कैमरे में यह चित्र उतरा था।
‘आधारशिला’ के यशस्वी संपादक दिवाकर भट्ट जी का अपने बीच से चला जाना मेरे लिए बेहद विचलित करने वाला है। आखिरी बार उनसे मार्च के महीने बातचीत हुई थी, फिर संवाद नहीं हो सका और अब…। उनसे काफी निकट का सा संबंध बहुत समय से बिल्कुल ताज़ा बना रहा। ‘आधारशिला’ में छपना भी हुआ और उसका नियमित पाठक भी बना रहा। हां, उनकी एक इच्छा को मैं जरुर पूरी नहीं कर सका कि विदेश की एक साहित्यिक यात्रा में हमें साथ होना चाहिए।
मेरी परिस्थितियां इसका कारण बनती रहीं। वे उन सीमित लोगों में भी शामिल रहे जो मेरे कर्मस्थली धरपा (बुलंदशहर) में भाभी जी सहित पधारे थे और वहां रात्रि विश्राम भी किया था। भगतसिंह कोश्यारी जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे, उस समय उत्तराखंड शोध संस्थान का कार्यक्रम देहरादून में आयोजित हुआ था। मेरा बुलंदशहर से आना हुआ था और वे हल्द्वानी से पधारे थे। कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध कवि लीलाधर जगूड़ी जी भी उपस्थित थे।
उसी दिन मेरे ‘याशिका MF-2’ कैमरे में यह चित्र उतरा था। भट्ट जी के साथ खुर्जा में अभिन्न मित्र प्रो. लारी आजाद जी के घर भी जाना हुआ था। डॉ. अंजू सेमवाल की पुस्तक ‘महावीर रवांल्टा के कथा साहित्य का तात्विक विवेचन’ के लोकार्पण के लिए वे उतरकाशी पधारे थे तो हमारा रात्रिभोज लीलाधर जगूड़ी जी के घर हुआ था और रात्रि विश्राम भी एक साथ ही हुआ था। ऐसी ही अनेक स्मृतियां इस समय स्मृति पटल पर उभर रही हैं। उनका जाना एक अच्छे मित्र व शुभचिंतक को खोना है। वे दुनिया को बेशक सदा के लिए अलविदा कह गए, लेकिन हमारी स्मृतियों में सदैव बनी रहेंगी। विनम्र श्रद्धांजलि…।
…’महावीर रवांल्टा’
(फेसबुक वाल से साभार)