उत्तरकाशी: राष्ट्रीय वेबीनार में हठयोग नाथ सिद्ध परंपरा के महत्व और प्रासंगिकता पर चर्चा

बड़कोट : राजेंद्र सिंह रावत राजकीय महाविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर हठयोग नाथ सिद्ध परंपरा एवं सूफी परंपरा के संदर्भ में एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया, जिसका शुभारंभ महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. एके तिवारी के प्रारंभिक उद्बोधन एवं अतिथियों के स्वागत संबोधन के साथ हुआ। वेबीनार में मुख्य अतिथि प्रोफेसर अतुल सकलानी भूतपूर्व विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय और कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी, मोहन सिंह गंववासी ने अध्यक्षता की।

प्रोफेसर सकलानी ने नाथ संप्रदाय, नव नाथ योग साधना, कुंडलिनी जागरण, शतचक्र महामुद्रा एवं नाथ परंपरा मच्छिंद्रनाथ से लेकर नव नाथों के विषय में चर्चा की। इसके अलावा नवधा भक्ति, हिंदू-मुस्लिम समन्वय, डॉ. पीतांबर दत्त बार्थवाल के नाथ संप्रदाय में अतुलनीय योगदान एवं नाथ तथा सूफी संतों के उद्भव एवं सामान्य में उनकी लोकप्रियता पर प्रकाश डाला।

इसके अलावा उनके द्वारा उत्तराखंड जैसे पवित्र भूमि में मंत्रों के माध्यम से जड़ी-बूटी के अविष्कार के बारे में विस्तृत जानकारी दी। साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने योग चित्त वृत्ति निरोध एवं योग कर्मसु कौशलम् जैसे विषयों के बारे में बताया। साथ ही नाथ एवं सूफी संतों की आवश्यकता एवं वर्तमान प्रासंगिकता और सूफी शब्द को पवित्रता से जोड़ते हुए विस्तार से व्याख्यान दिया।

सामाजिक कार्यकर्ता नेत्रपाल सिंह यादव, संस्थापक एवं निदेशक नोवेल्टीज फाउंडेशन देहरादून ने हठयोग की प्रासंगिकता भारत के संदर्भ में कहा कि हठयोग का अध्ययन मानव विकास की अवस्थाओं पर विस्तार से व्याख्यान दिया गया। उन्होंने कहा कि मन का शरीर में स्थान है ना रूप है। इसे केवल योग के माध्यम से साधा जा सकता है। पतंजलि योग सूत्र पर विस्तार से चर्चा की गई यादव जी द्वारा स्वयं शिव और पार्वती के द्वारा हठयोग के उद्भव पर विचार विमर्श किया गया।

प्रसिद्ध साहित्यकार महावीर रवांल्टा ने कहा कि किसी अभ्यास को जिद्द पूर्वक करने को ही, हठयोग कहते हैं। उन्होंने भगवान शिव के द्वारा पार्वती को दिया गया यह गूढ़ रहस्य, जिसे स्वयं मछिंद्रनाथ में सुना था। इस पर व्याख्यान दिया गया। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि भारत में नाथ सिद्ध परंपरा का विकास हुआ और सरहपा का हिंदी साहित्य में क्या स्थान है। उलट मासी क्या है। संधा भाषा क्या है। दोहा क्या है। जरिया पद क्या है और मनुष्य धर्म से नहीं बल्कि कर्म से ऊंचा बनता है। जिसे हमें सूफी संतों के द्वारा सीखना चाहिए।

इसके अलावा देवेंद्र कुमार सिंह के द्वारा योग साधना और योग रहस्य पर विस्तार से विचार किया गया। इस वेबीनार की प्रमुख समन्वयक डाॅ. विजय बहुगुणा ने भी नथ सिद्ध परंपरा के बारे में बीच-बीच में विस्तार से जानकारी दी गई। महाविद्यालय के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. दया प्रसाद गैरोला के द्वारा सभी अतिथियों आभार व्यक्त किया गया। साथ ही संक्षिप्त विवरणात्मक व्याख्यान भी दिया गया।

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posted on : June 21, 2021 6:13 pm
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