UTTARAKHAND : नहीं रहे फोटोग्राफर बाबा, 1962 में भारतीय सेना को दिखाई थी राह

उत्तरकाशी: प्रसिद्ध फोटोग्राफर और गंगोत्री धाम के संत स्वामी सुंदरानंद को 95 साल की उम्र में निधन हो गया है। आज उनका उनका शरीर गंगोत्री लाया जाएगा। तपोवन कुटिया के पास ही उनकी समाधि बनायी जाएगी। स्वामी सुंदरानंद को अक्टूबर माह में कोरोना भी हुआ था। ठीक होने के बाद वे अपने परिचित डाॅक्टर के घर ही रह रहे थे। जहां रात को भोजन करने के बाद काफी देर बातचीत करने के बाद अचानक ही निधन हो गया।

उनको फोटाग्राफर बाबा के नाम से दुनियाभर में जाना जाता है। उन्होंने हिमालय में अपने सफर के दौरान करीब ढाई लाख तस्वीरों का संग्रह किया है। जिसमें अधिकांश फोटो गंगोत्री में स्थित उनकी आर्ट गैलरी में प्रदर्शित हैं। 2002 में उन्होंने अपने अनुभवों को एक पुस्तक ‘हिमालय: थरू ए लेंस ऑफ ए साधु यानी एक साधु के लैंस से हिमालय दर्शन में प्रकाशित किया। पुस्तक का विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था।

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आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में 1926 में जन्मे स्वामी सुंदरानंद को पहाड़ों से बेहद लगाव था। प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद 1947 में वह पहले उत्तरकाशी और यहां से गोमुख होते हुए आठ किलोमीटर दूर तपोवन पहुंचे। कुछ समय तपोवन बाबा के सानिध्य में रहने के बाद उन्होंने संन्यास ले लिया।

1955 में 19,510 फुट की ऊंचाई पर कालिंदी खाल से गुजरने वाले गोमुख-बदरीनाथ पैदल मार्ग से स्वामी सुंदरानंद अपने साथियों के साथ बदरीनाथ की यात्रा पर थे। अचानक बर्फीला तूफान आ गया और अपने सात साथियों के साथ वे किसी तरह बच गये।यहीं से उन्होंने हिमालय के विभिन्न रूपों को कैमरे में उतारने की ठान ली। 25 रुपये में एक कैमरा खरीदा और शुरू फोटोग्राफी कर दी।

गंगोत्री हिमालय के हर दर्रे तथा ग्लेशियर एवं गाड़-गदेरों से परिचित स्वामी सुंदरानंद 1962 के चीनी आक्रमण में भारतीय सेना की बार्डर स्काउट के पथ प्रदर्शक रह चुके हैं। भारत-चीन युद्ध के दौरान वह सेना के पथ प्रदर्शक भी रहे। एक माह तक साथ रहकर उन्होंने कालिंदी, पुलमसिंधु, थागला, नीलापाणी, झेलूखाका बार्डर एरिया में सेना का मार्गदर्शन किया।

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posted on : December 24, 2020 5:28 am
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