उत्तराखंड : आज दिखेगा अद्भुत नजारा, फिर इतने साल बाद आएगा नजर

नैनीताल : खगोलीय घटनाओं के लिहाज से यह साल बेहद खास रहा है। आज शाम ओरिजिनल ब्लू मून की रात है। शाम 6:53 पर सूर्यास्त होते ही 7:11 पर आकाश में चंद्रमा का राज हो जाएगा, लेकिन आज का चांद साधारण न होकर ओरिजिनल ब्लू मून होगा, जो अब 2-3 साल बाद ही नजर आएगा।

तीन-तीन माह के वर्ष के चार सीजन, सोलस्टिस (संक्रांति) से इक्विनॉक्स (विषुव) की प्रत्येक अवधि तीन माह की होती है। इस अवधि में तीन पूर्णिमा पड़ती हैं लेकिन कभी कभार आम तौर पर ढाई से तीन वर्ष में एक बार इन तीन महीनों में चार पूर्णिमा भी पड़ जाती हैं। जब कभी ऐसा होता है तो इनमें से तीसरी वाली पूर्णिमा ब्लू मून कहलाती है।

इस हिसाब से वर्तमान सीजन की कुल चार में से तीसरी पूर्णिमा यानि ब्लू मून आज 22 अगस्त की रात को है।  जब से ब्लू मून की परिकल्पना ने जोर पकड़ा ब्लू मून की यही मान्यता प्रचलित रही।

1940  के दौरान  इसमें एक और मान्यता प्रचलित हो गई, जिसके अनुसार एक कैलेंडर माह में यदि दो पूर्णिमा पड़ें तो दूसरी पूर्णिमा ब्लू मून कही जाने लगी। ओरिजिनल ब्लू मून एक सीजन में चार पूर्णिमा होने पर तीसरी वाली ही होती है।

आर्य भट्ट शोध एवं प्रेक्षण विज्ञान संस्थान एरीज के वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडे के अनुसार अब ये दोनों ही मान्यताएं प्रचलन में हैं। एक कैलेंडर माह में दो पूर्णिमा के आधार पर इससे पहले ब्लू मून 31 अक्तूबर 2020 को  दिखा था। अगला 31 अगस्त 2023 को पड़ेगा।

दुर्लभ होता है डबल ब्लू मून

एक सीजन में चार में से तीसरी पूर्णिमा के आधार पर ब्लू मून 18 मई 2019 को दिखा था और अगला तीन वर्ष बाद 19 अगस्त 2024 को पड़ेगा। जून 2021 में संक्रांति 21 जून को, जबकि पूर्णिमा 24 जून और 24 जुलाई को थी। अब 22 अगस्त और 20 सितंबर को पूर्णिमा है।

संक्रांति 22 सितंबर को है। इस तरह इस बार संक्रांति से दो दिन पूर्व चौथी पूर्णिमा है। खास बात यह है कि ये दोनों प्रकार के ब्लू मून अमूमन अलग-अलग वर्षों में ही पड़ते हैं।

अगली बार वर्ष 2048 में यह घटना होगी, जब 31 जनवरी को मासिक आधार पर और 23 अगस्त को सीजनल आधार पर ब्लू मून की घटना होगी। एक वर्ष में दो ब्लू मून की घटना बेहद दुर्लभ है और अमूमन एक शताब्दी में चार बार ही होती है।

नीला होता नहीं मून

अंग्रेजी की कहावत वन्स इन अ ब्लू मून का अर्थ दुर्लभ घटना होती है। हालांकि न तो चांद कभी नीला होता है और न ही ब्लू मून की घटना बहुत दुर्लभ होती है। तो ये कहावत कहां से प्रचलित हुई? जानकारों का मानना है कि अंग्रेजी के बेल्व यानी बिट्रे शब्द से इसका संबंध हो सकता है।

बिट्रे यानी जो स्थापित विश्वास से अलग हो। प्रति माह एक या प्रति सीजन तीन पूर्णिमा स्थापित परंपरा है और अतिरिक्त पूर्णिमा इससे हटकर। संभवत: बेल्व शब्द बाद में ब्लू हो गया होगा।

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posted on : August 22, 2021 1:03 pm
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