मुखौटा
क्यों इतने मुखौटे लगाता है इंसा
क्यों खुद को ही खुद से छुपाता है इंसा
दबे रहते हैं अंगारे दिल में
फिर भी चेहरे से मुस्कुराता है इंसा।
अपने पराए की समझ
होती जा रही है मुश्किल
कि चेहरे पर चेहरा लगाए रहता है इंसा।
गाली छुपी रहती है गहराई में
फिर भी जुबां को गैबी
बनाए रहता है इंसा।
प्यार जज़्बात सब
होते जा रहे हैं डिजिटल
कि हर वक्त मसरूफियत का
बहाना बनाता है इंसा।
पहले निगाहें बता देती थीं
हाल दिल का
पर अब निगाहों पर भी
नक़ाब लगाए रहता है इंसा।
~© लक्ष्मी दीक्षित
ग्वालियर मध्यप्रदेश
(लेखिका, आध्यात्मिक गाइड)
posted on : July 14, 2023 9:42 am