कोरोना काल में हर कोई परेशान है। लोग जगह-जगह फंसे हुए हैं। उनको वापस लाया जा रहा है। सरकार के इस फैसले से बेहद खुशी है, लेकिन क्या सरकार प्रवासियों की वापसी को अपनी ब्रांडिंग का जरिया बना रही है ? क्या सरकार प्रवासियों को वोट की नजर से देख रही है ? क्या सरकार कोरोना काल को भी अपने लिए अवसर के रूप में देख रही है ? क्या सरकार 2022 की तैयारियों का ट्रायल कर रही है ?
सवाल-दर-सवाल हर भाजपा और सरकार को परेशान कर सकते हैं, लेकिन इनका जवाब भी उनको देना होगा। ये सवाल इसलिए सिर उठा रहे हैं, क्योंकि इनको मजबूर किया गया है। ये सवाल जवाबों के बाद भी सवाल बने रहेंग, लेकिन इस डर से कि सवालों का सही जवाब नहीं मिलेगा, चुप्प रहना ठीक नहीं होगा। भाजपा ने ऐसा कमाल किया है, जिसके बाद सवाल और तीखे और तेज हो गए हैं।
कोटद्वार में दूसरे राज्यों से लाए गए प्रवासियों से भाजपा ने सीएम त्रिवेंद्र के पोस्टर थमा दिए और उनसे त्रिवेंद्र रावत जिंदाबाद के नारे भी लगवाए। भाजपा के स्थानीय नेता यहीं नहीं रुके। थके और परेशान प्रवासियों से कहा गया कि इतनी परेशानी झेल ली तो थोड़ा परेशानी और सह लोग। अब थोड़े नारे भी लगा दो… फिर त्रिवेंद्र और त्रिवेंद्र सरकार के जयकारे शुरू हो गए।
जसोला…भाजपा भाबर मंडल के अध्यक्ष हैं। ये फितरत से ऐसे नहीं हैं। सवाल ये है कि इनके पीछे कौन है ? जिसने पोस्टर छपवाए और नारे लगवाए। जरूर कोई पर्दे के पीछे से ये सब करवा रहा है। जो भी हो, कोरोना काल में इस तरह से सीएम और पार्टी की ब्राडिंग किसी भी हाल में सही नहीं ठहराया जा सकता। कोरोना की लड़ाई कोई सीएम या पीएम नहीं लड़ रहे…पूरा देश लड़ रहा है। इस लड़ाई का असल श्रेय कोरोना फाइर्स को जाता है। जयकारे उनके लगने चाहिए…। उन रोडवेज के चालक और परिचालक के लगने वाहिए, जिन्होंने फंसे प्रवासियों को घर पहुंचाया।