देहरादून: पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने चार साल तक राज्य की सत्ता संभाली। उनके कार्यकाल के दौरान उनके साथ कई विवाद भी जुड़े। उनसे पार्टी के विधायकों और मंत्रियों की नाराजगी साफ नजर आई। उनके फैसलों पर भी सवाल खड़े हुए।
यह माना जाता है कि उनको इसी तरह की नाराजगियों के चलते चार साल पूरे होने से पहले ही CM पद से हटा दिया गया। सीएम पद से हटाए जाने के बाद वो चुप ही रहे, लेकिन अब उनके तेवर बदले-बदले नजर आ रहे हैं।
सीएम पद से हटाए जाने के बाद कहा जा रहा था कि उनको केंद्र में मंत्री बनाया जा सकता है। फिर अचानक उनकी जगह सीएम बने तीरथ सिंह रावत को भी हटा दिया गया। फिर पुष्कर सिंह धामी को सीएम बनाया गया।
इससे त्रिवेंद्र की पूरी गणित बिगड़ गई। हाल ही में त्रिवेंद्र दिल्ली गए थे, तो चर्चा हुई कि उनको कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। इसके बाद भी फिलहाल उनको कोई जिम्मेदारी नहीं मिली है।
लेकिन, एक बात जो सामने आई वह हैं पूर्व सीएम त्रिवेंद्र के तीखे तेवर। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र के तेवर बदले-बदले नजर आ रहे हैं। पहले उन्होंने प्रदेशभर में अलग से ब्लड डोनेशन कैंप लगाए।
उसके बाद हरेला का कार्यक्रम भी उन्होंने अकेले ही आयोजित किया। इस बीच पार्टी के कार्यक्रमों से भी उनकी करीब-करीब दूरी ही रही।
इन सबसे खास बात यह है कि देवस्थानम बोर्ड और भू कानून पर उन्होंने युवा सीएम पुष्कर सिंह धामी के बयानों और फैसलों का विरोध भी किया। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि धामी सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
लेकिन, जिस तरह से त्रिवेंद्र ने सवाल दागे हैं, उससे एक बात तो साफ है कि उनके मन में कुछ ना कुछ जरूर चल रहा है। चुनाव से पहले जिस तरह से उनके नबयान सामने आ रहे हैं, उससे तो इसी ओर इशारा हो रहा है।
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा है कि जब एक सीएम को हटाया जाता है तो लोगों के लिए सवाल उठाना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि पार्टी के हर कार्यकर्ता की जिम्मेदारी है कि वह पार्टी के फैसलों का पालन करे।
जब सवाल उठते हैं तो जवाब देना पार्टी नेतृत्व की जिम्मेदारी होती है। पद से हटने के लगभग पांच माह बाद पहली बार त्रिवेंद्र ने अपने मन की बात सबके सामने रखी है।
अब राजनीतिक जानकार यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि ये त्रिवेंद्र का गुस्सा है या उनके मन की बात। सोशल मीडिया में तो इसे त्रिवेंद्र के बगावती बोल कहा जा रहा है।
लेकिन, सही मायने में यह बगावत है या नहीं, यह कह पाना थोड़ा मुश्किल है। हां इनता साफ है कि वो उनको पद से हटाए जाने और उनके फैसलों पर पार्टी और सरकार के स्तर से सवाल उठाए जाने से बेहद नाराज हैं।
इसी साल आठ मार्च को त्रिवेंद्र सिंह रावत को भाजपा नेतृत्व ने दिल्ली बुलाया था। दिल्ली में उन्होंने वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की थी। नौ मार्च को त्रिवेंद्र ने देहरादून लौटकर राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को इस्तीफा सौंप दिया था।
10 मार्च को भाजपा विधायक दल की बैठक में तीरथ सिंह रावत को नया नेता चुना गया था। इस बीच त्रिवेंद्र ने उनको हटाए जाने को लेकर बयान नहीं दिया, लेकिन अब चुनाव से पहले उनके तेवर कड़े होने लगे हैं।