उत्तराखंड : फिर चुनावी समर में इंद्रेश, जन आंदोलनों की बुलंद आवाज़

देहरादून: लोकतंत्र में वोट की ताकत ही सबसे बड़ी ताकत है। ऐसी ताकत, जिससे आप उड़न खटोलों में उड़कर धरातल पर विकास की बातें करने वाले नेताओं को जमीन पर उतार सकते हैं। वोट की ताकत से रंक से राजा बने खुद को महाराजा समझने वाले सफेद कपड़ों में काले कारनामे वालों को गद्दी से उतार सकते हैं। कुछ नेता ऐसे भी होते हैं, जिनको जनता जुबान से तो प्यार करती है। उनको अच्छा भी समझती है, लेकिन वोट की ताकत देकर उनको कभी मजबूत नहीं करती। बावजूद, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही लोगों की आवाज ना दबे और उनकी आवाज बुलंदी से हुकुमरानों के कानों पर जोरदार धमक से सुनाई दे, उसके लिए वो अपना गला बैठा लेते हैं।

चाहते तो वो भी सत्ता की मलाई के चटकारे लगाने के लिए भाजपा और कांग्रेस जैसे दलों में शामिल होकर शायद जीत हासिल कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इंद्रेश जब भी चुनाव लड़े, जनता ने उनको वोटों की ताकत नहीं दी। पद हासिल करने के लिए दलबदलुओं का उत्तराखंड में पुराना इतिहास तो है ही, वर्तमान भी उसी पटरी पर तेजी से आगे बढ़ रहा है और जो अपने दल के साथ ईमानदारी से जुड़े हैं, उनको उसी दल के कारण लोगों का प्यार नहीं मिल पाता, यह कड़वा है, लेकिन सच है। ऐसे ही लोकतंत्र के एक सच्चे और मजबूत सिपाही हैं इंद्रेश मैखुरी। नाम सुनकर हर कोई यही कहता है कि बहुत शानदार व्यक्ति हैं, लेकिन जब वोट की बारी आती है, तो भाजपा और कांग्रेस पर ही सिमट जाते हैं।

इंद्रेश मैखुरी इस बार भी विधानसभा चुनाव में कर्णप्रयाग से चुनावी समर में उतरने जा रहे हैं। उनके पास कार्यकर्ताओं की बहुत बड़ी फौज तो नहीं है, लेकिन उनके साथ उन लोगों की ताकत और भरोसा जरूर है, जिनके लिए वो हर जन आंदोलन में कूद पड़ते हैं। मुकदमे झेलते हैं और लाठियां भी खाते हैं। कोई-कोई तो गालियां भी दे देते हैं। बावजूद, इंद्रेश मैखुरी जनता की अवाज सड़कों पर बुलंद करते रहते हैं। उनके हौसले को उनकी जैसी सोच और काम वाले लोग मजबूती और ताकत देते हैं।

कर्णप्रयाग विधानसभा सीट चमोली जिले में आती है। इस जिले में अब तक भाजपा, कांग्रेस और दूसरे दल अपना प्रत्याशी नहीं उतार पाए हैं, लेकिन भाकपा (माले) ने इंद्रेश मैखुरी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। इंद्रेश मैखुरी कर्णप्रयाग ब्लॉक के ही मैखुरा गांव के हैं। क्षेत्र में बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी उनको जानते हैं और अच्छे से पहचानते भी हैं। मैखुरी जन आंदोलनलों के लिए अपनी पहचान रखते हैं। राज्य आंदोलन से लेकर आज तक शायद ही कोई ऐसा बड़ा आंदोलन है, जिसमें उन्होंने जनता के लिए संघर्ष ना किया हो।

युवाओं के बीच उनकी अच्छी पैठ है। युवा उनको अपना हीरो भी मानते हैं, लेकिन सवाल तब खड़े होते हैं, जब वोट देने की बात आती है। तब यही युवा भाजपा, कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों के पाले में खड़े नजर आते हैं। इस बार फिर से मौका है। एक अवसर आया है, जिसे युवाओं को भुनाने की जरूरत है। इंद्रेश मैखुरी जैसी बुलंद आवाज को विधानसभा में पहुंचाने का सही वक्त है। सोशल मीडिया में लोग उनके लिए खुद ही प्रचार कर रहे हैं। उन पोस्टों में ऐसी ही कई तरह की अपीलें लोग कर रहे हैं।

इंद्रेश मैखुरी का नाता आंदोलनों से पुराना है। 12वीं में पढ़ाई के दौरान ही वो उत्तराखंड राज्य आंदोलन में कूद पड़े थे। उनके पास राजनीति में जाने के लिए कई विकल्प थे। लेकिन, उन्होंने अपना विकल्प खुद चुना और 2000 में गढ़वाल विश्विद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष चुने गए। आइसा को देशभर में नेतृत्व देने वाले मैखुरी 2006 से 2008 तक भाकपा माले की छात्र शाखा आइसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे।

इंद्रेश मैखुरी की सक्रियता केवल उत्तराखंड में ही नहीं हैं। राज्य में राजधानी गैरसैंण का मसला हो कोई और मुद्दा, हर जगह उनकी भागीदारी और मौजूदगी नजर आती रही है। लेकिन, इसके अलावा भी मैखुरी देश के दूसरे राज्यों में जाकर जन आंदोलनों में जाकर अहम भूमिका निभाते हैं। जल, जंगल और जमीन के मुद्दे उनके लिए राजनीतिक मसले नहीं हैं।

यह उनके लिए उत्तराखंड राज्य की परिकल्पना, अस्तित्व और अस्मिता के मसले हैं। रोजगार का सवाल हो या फिर महिलाओं के हक की लड़ाई। तबाही मचाने वाली जल विद्युत परियोजनाओं के खिलाफ हमेशा ही आवाज बुलंद की। उनकी खास बात यह है कि वो केवल हवाई बातें नहीं करते। बल्कि, तथ्यों और शोध के आधार अपनी बात रखते हैं।

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posted on : January 12, 2022 2:55 pm
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