कसम से यार, जिस दिन से चुनाव का ऐलान हुआ। भाजपा, कांग्रेस ने टिकट क्या बांटे…तब से खोपड़ी खराब है। ऐरु-गैरु नत्थू खैरु…जिसे देखो वही कह रहा मैं बनूंगा विधायक। जिनके लिए पार्टियां पहले मां थी, उनके लिए भी अब डायन बन चुकी है। जिनके लिए गर्लफ्रैंड थी…उनका अब तलाक हो चुका है। है ना गजब…। उतने कार्यकर्ता नहीं बचे जितने नेता बन गए…।
खैर बरसाती मेंढक जो ठहरे। हालांकि, इन दिनों कोई ठैरा हुआ नहीं, भागम-भाग में हैं। सबको विधायक बनना है और सबको जनता लड़ा चाहती है। पर भाई लोगों एक बात तो बताओ…प्रधान का चुनाव जीत सकते हो कि नहीं? भाई बताना तो पड़ेगा। हर कोई नेता बना हुआ है। अरे भाई किस बात के नेता हो? पहाड़े पढ़ने लगो तो अलगे पांच साल तक खत्म ही नहीं होने वाली। नेता एकम नेता, नेता दूनी नेता, नेता तियां, नेता चकु नेता, नेता पंजे नेता, नेता छक्का नेता, नेता सता नेता, नेता अट्ठा नेता, नेता नमा नेता, नेता दसंकी नेता…।
हर किसी की एक ही रट है, जनता लड़ा रही है बल हमको चुनाव…। असली पता जनता के नेताओं को तभी चलता है…जब सबकी जमानत जफ्त हो जाती है। ऐसे कई तरह के नेता इन दिनों निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर रहे हैं। उनके ऐलानों से तो ऐसा लगता है, जैसे उत्तराखंड में इस बार निर्दलीय ही सरकार बनाने वाले हैं…। लगे हाथ सीएम फेस भी घोषित कर दो…। मैं भी बनूंगा विधायक, मुझे भी जनता चुनाव लड़वा रही है। निर्दलीय लड़ूंगा…।