उतराखंड : कोरोना काल में रिश्तों का टूटना, अखबार के विज्ञापनों में दिखी दुखद दास्तान, दिल को झकझोरने वाला सच

  • खिलाफ सिंह

राष्ट्रीय सहारा, न्यूज पेपर के लिए कार्य करते हुए करीब 14 वर्ष हो चुके हैं। कोरोना महामारी के कारण पिछले वर्ष से पूरी दूनिया परेशान है। पूरे विश्व के लोगों ने इस महामारी में अपनों को खोया है। कई लाख बच्चे अनाथ हुए। बेरोजगारी बड़ी, तनावग्रस्थ जीवन जीते हुए रिश्तों का टूटना भी इस महामारी में खूब फलीभूत हुआ।

पिछले साल से लगातार हमने देखा कि हमारे अखबार में ‘‘सम्बन्ध-विच्छेद’’ वर्गीकृत विज्ञापनों की संख्या में काफी इजाफा हुआ। कहीं सास-ससूर ने बेटे बहु से सम्बन्ध विच्छेद किया तो कईयों ने अपने संतानों को बेदखल किया। इस तरह के विज्ञापनों में अचानक बढ़ोत्तरी हुई। राष्ट्रीय सहारा के अखबार का अन्य दैनिक अखबारों से वर्गीकृत विज्ञापनों की दर कम होने के कारण ज्यादातर लोग इसी अखबार में प्रकाशन करवाते हैं।

कम से कम 100 से ज्यादा लोगों को मैंने स्वयं उनके प्रकाशन के लिए मना किया। क्योंकि ये वो लोग थे जो अपनी पत्नी या पति से सम्बन्ध विच्छेद करना चाहते थे। इस प्रकार के विज्ञापनों का प्रकाशन अखबार में नहीं हो सकता क्योंकि पति-पत्नि को संबंध विच्छेद करने का अधिकार सिर्फ कोर्ट में है।

एक आंकलन मैंने स्वयं संकलित किया। तो सोचने पर मजबूर हुआ कि समाज का सिस्टम इतना खराब क्यों हुआ कि सिर्फ व्यस्त जीवनशैली ही आजकल के रिश्तों का आधार है! क्या हर सप्ताह घूमना-फिरना/बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल में खरीददारी करना। महंगे उपहारों से एक-दूसरे को नवाजना।

क्या यही रिश्तों का आधार है? सरकार द्वारा कोविड कर्फ्यू में कुछ ढील दी गयी तो शिमला से लेकर मसूरी तक लोगों की भीड़ जमा हो गयी। प्रधानमंत्री ने भी भीड़ पर अपनी चिंता व्यक्त की थी। सरकार न्यूज चैनलों द्वारा दिखाये जाने वाले भीड़ पर सिर्फ चिंता व्यक्त करते हैं। चिंतन नहीं करते हैं। चिंतन समाज को ही करना पड़ेगा।

ये जितने भी लोग शिमला /मसूरी या अन्य पर्यटन स्थलों पर जा कर भीड़ इकट्ठी कर रहे हैं, ये सब बेवकूफ नहीं हैं। बल्कि मजबूर हैं, इन्हीं टूटते रिश्तों को एक नया आयाम देने के लिए यह भीड़ यहां जुटी है। अगर कोई पत्रकार पूछता है कि आप मसूरी या शिमला कब और क्यों आये तो बड़े ही काबिलियत के साथ दूसरे तरफ से जवाब आता है- We are very happy to be here. And seeing the views of nature became even more fun.

अगले ही पल पत्रकार पूछ देता है कि कोरोना की तिसरी लहर का खतरा लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में आपने मास्क भी नहीं पहना है, और पत्नी के साथ-सााथ बच्चों का जीवन भी खतरे में डाल रहे है? फिर चेहरे पर मायूसी छा जाती है। वही भाव कि रिश्ते बिखरने से अच्छा कोरोना झेलना अच्छा है।

में उत्तराखण्ड का ही रहने वाला हूं। कुछ वर्ष पूर्व तक हमने देखा है कि सारे रिश्तेदार चचा-ताऊ/सम्पूर्ण परिवार एक ही कॉलोनी में निवास करते थे। कहीं-कहीं तो एक ही घर में निवास करते थे। लेकिन फिर भी खुश रहते थे। और रिश्तों के प्रति सदभाव रखते थे। आज एक परिवार मां-बाप के साथ भी कुछ महीने साथ नहीं रह पा रहे हैं।

इन सबों का कारण हमारी विकसित सोच है जिसे हम विकसित सोच कहते हैं, वह विकसित सोच पारिवारिक दृष्टिकोण से विकासशील भी नहीं है। क्योंकि पश्चिमी सभ्यता का इतना बड़ा प्रभाव हमारी संस्कृति पर पड़ चुका है कि यह प्रभाव कभी न सही होने वाले घाव का रूप ले चुका है जो समय के साथ-साथ नासूर बनती जायेगी-बनती ही जायेगी, और एक दिन रिश्तों की जीवनलीला यूं ही समाप्त होती जायेगी। इस विषय पर चिंतन सभी को करना चाहिए।

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posted on : July 11, 2021 10:42 pm
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