बद्रीनाथ धाम से है ये चिट्ठी, आदरणीय महाराज जी…पाय लागू

जय बदरीविशाल
आदरणीय महाराज जी
पाय लागू

महामहिम बोलांदा बदरीनाथ जी
यदि बाबा केदारनाथ के कपाट पूर्व तय कार्यक्रम के अनुसार ही खुलते हैं तो भगवान बदरीनाथ के कपाट भी पूर्व तय समय ही खुलना उचित रहेगा । भगवान बदरीनाथ जी की शीत काल में पूजा देवताओं द्वारा की जाती है ।जिनके पुजारी नारद जी हैं ।नारद पुराण के अध्याय २/६७/३७ में श्लोक बदरीनाथ जी की पूजा के संदर्भ में श्लोक है कि…

वैशाखे मासे वै देवाः गच्छन्ति निज मंदिरम् ।
कार्तिके तु समागत्य पुनरर्चा चरन्ति च ।।
ततो वैसाखेमारम्य मानवः हिम-संक्षयात् ।
अतः षण्मास दैवतैः पूजा षण्मासं मानवैस्तथा ।।

अर्थात बैसाख मास में देवता अपने निजी मंदिरों में चले जाते हैं ।और कार्तिक मास मे पुनः आ कर अर्चना करते है ।इस प्रकार वैसाख मास से मानवों द्वारा पूजा प्रारम्भ होती है ।यही शास्त्रीय विधान है ।तिथि परिवर्तन से कपाट जेठ मास में कृष्ण पक्ष में जा रहे हैं जिस कारण इस शास्त्र सम्मत मान्यता का उल्लंघन हो रहा है जो अनुचित है ।यह सही है कि परम्परा के अनुसार आपका स्थान सर्वोपरि है किन्तु आपके श्रेष्ठता भी तभी तक जनमान्य होगी जब आपका निर्णय शास्त्र अनुकूल हो ।

करोना महामारी और लॉकडाउन के बाद भी बाबा केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री जी के कपाट पूर्व कार्यक्रम के अनुसार ही खुल रहे ह़ैं । तो ऐसे में बदरीनाथ जी की पूजा व्यवस्था से सम्बद्ध समाज और भक्तों का यह सवाल जायज है कि बदरीनाथ जी के कपाट तय समय पर क्यों नहीं खुल सकते ?

राज्य सरकार ने महाराजा टिहरी को कैबनट बैठक कर दो विकल्प दिये थे कि वे या तो तिथि परिवर्तन करें. या मुख्य पुजारी / रावल के स्थान पर वैकल्पिक व्यवस्था हेतु परम्परा और पूर्व नजीर के अनुरूप उच्च ब्राह्मण को नामित करें।महोदय बदरीनाथ की पूजा इतिहास में ऐसे कई उवसर आये हैं जब स्थानीय ब्राह्मणों ने मुख्य पुजारी के दायित्व का निर्वहन किया है। रावल परम्परा से पूर्व जब दण्डी स्वामी धाम की पूजा अर्चना करते थे तब भी चार अवसर ऐसे आये हैं, जब भोग बनाने वाले डिमरी ब्राह्मण धाम में मुख्य पुजारी के रूप में कार्य किया है।

संवत्सर 1611 अर्थात ई सन 1554 मे दण्डी स्वामी ब्रहमानन्द जी के देहवसान पर पं० मनोरथ डिमरी ने मुख्य पुजारी के रूप में बदरीनाथ जी की दैनिक पूजा सम्पन्न करी ।संवत 1715 याने ई० सन् 2668 में दण्डी स्वामी बालकृष्ण जी की आकस्मिक निधन पल भी पं० सकला डिमरी जी ने भगवान का लम्बे समय तक नित्य पूजन कर्म सम्पन्न किया ।संवत 1833 में दण्डी स्वामी रामकृष्ण जी के निधन के बाद महाराजा प्रदीप शाह जी के निर्देश पर ब्रहम्चारी रावल / पुजारी की परम्परा शुरू हुई ।जिसमें पहले रावल पं० गोपाल डिमरी बने जिन्होंने नौ वर्ष तक यह दायित्व निभाया ।इसके बाद से केरल से ब्रहम्चारी नम्बूदरी पुजारी को रावल चुनने की प्रथा अस्तित्व में आयी। रावल व्यवस्था के दौरान ई० सन् 1817 में चौथे रावल सीताराम जी के निधन के बाद भी डिमरी ब्राह्मण ने नये रावल के आने तक मुख्य पुजारी के रूप में भगवान बदरीनाथ जी की पूजन परम्परा को अखण्ड रखा है।

यदि केदारनाथ के कपाट तय समय पर ही खुलते हैं तो श्री बदरीनाथ के कपाट भी पूर्व कार्यक्रम के अनुसार खोले जाने पर पुनर्विचार करते हुए बदरीनाथ जी पूजा की वैकल्पिक व्यवस्था हेतु डिमरी धार्मिक केन्द्रीय पंचायत की संस्तुति फर ब्रहम्चारी डिमरी ब्राह्मण को रावल जी के स्वास्थ्य हो जाने तक उनके स्थान पर पूजा हेतु नामित करने का कष्ट करेंगे । ताकि बदरीनाथ जी की हजारों साल पुरानी परम्परा खण्डित न हो ।

            पंकज डिमरी
(प्रवक्ता एवं अध्यक्ष विधी समिति )
श्री बदरीनाथ डिमरी धार्मिक केन्द्रीय पंचायत

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posted on : April 21, 2020 10:35 am
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