चमोली : वामपंथी पार्टियां-माकपा और भाकपा (माले), एक मार्च को विधानसभा पर प्रदर्शन करने जा रहे, घाट क्षेत्र के लोगों पर बर्बर लाठीचार्ज की तीव्र भर्त्सना करती है. जिस तरह से पानी की बौछारें छोड़ने के बाद लाठीचार्ज करने में भी महिलाओं को तक नहीं बख्शा गया. उसने त्रिवेंद्र सरकार के संवेदनहीन, अलोकतांत्रिक और तानाशाह चेहरे को फिर उजागर कर दिया.तीन महीने से शांतिपूर्ण आंदोलन करने वाले आंदोलनकारियों का ऐसा दमन अक्षम्य है. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को ऐसे बर्बर दमन के लिए उत्तराखंड की जनता से सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए और प्रशासन व पुलिस के उन अफसरों को तत्काल निलंबित करना चाहिए, जो शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन से निपटने में नाकाम रहे.
उत्तराखंड पुलिस जिस तरह से सत्ताधारी पार्टी के ट्रोल की भूमिका अदा करते हुए, शांतिपूर्ण आंदोलन का दमन करने के बाद उसे बदनाम करने का अभियान चलाए हुए है,वह निंदनीय है. चमोली पुलिस का यह प्रचार सर्वथा झूठ है कि पथराव होने के बाद लाठीचार्ज किया गया.वास्तविकता यह कि पुलिस ने बैरिकेड पर विधानसभा की ओर बढ़ने की कोशिश करने वाले महिला पुरुषों पर बेतहाशा लाठियां, बिना किसी पूर्व चेतावनी के चलाई. लाठीचार्ज के वीडियो में साफ दिख रहा है कि प्रदर्शनकारी पुलिस से एकदम सट कर खड़े हैं और उन्हें धकेल कर पुलिस ने लाठियां चलाना शुरू की. आंदोलन पर कीचड़ उछालने के फेर में उत्तराखंड पुलिस और खास तौर पर चमोली पुलिस अपने हाथ गंदे कर रही है.
माकपा के राज्य सचिव राजेंद्र नेगी ने कहा कि उत्तराखंड सरकार द्वारा घटना की मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दिए गए हैं और ए.डी.एम. चमोली को जांच अधिकारी बनाया गया है. जब जिले के पुलिस का सर्वोच्च अफसर आंदोलन के खिलाफ अभियान चलाए हुए हो तो ए.डी.एम. जैसे छोटे अफसर से स्वतंत्र जांच की अपेक्षा बेमानी है. घटना की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच उच्च न्यायालय के सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश से करवाई जानी चाहिए.
भाकपा (माले) के गढ़वाल सचिव इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत द्वारा आंदोलकारियों का उपहास करने के लिए आंदोलनजीवी शब्द का प्रयोग उनकी संकीर्ण मानसिकता को प्रदर्शित करता है. आंदोलन के दम पर बने राज्य में आंदोलनकारी होना उपहास का नहीं गर्व का विषय है. मुख्यमंत्री को आंदोलनों के प्रति उपहास नहीं संवेदना और समझदारी का रुख अपनाना चाहिए.